अखिल भारतीय साहित्य परिषद्

​प्रमुख उद्बोधन

​प्रमुख उद्बोधन

साहित्यकार सम्मान समारोह भोपाल
पूजनीय सरसंघचालक डाॅ. मोहनराव भागवत का उद्बोधन

‘जीवन में अच्छे-बुरे का संस्कार जिन माध्यमों से होता था, उनसे आज हम दूर जा रहे हैं। गाँव में अनपढ़ मिलते हैं जिन्हें तुलसी रामायण कण्ठस्थ है। पूछने पर वे संदर्भ सहित बता सकते हैं। लेकिन उपाधि प्राप्त पढ़े-लिखे विद्वान रामायण की छोटी सी बात भी बताने की स्थिति में नहीं हैं। आधुनिक प्रणाली के तंत्र तथा व्यवस्थाएँ मनुष्य को मनुष्य के विवेक से दूर कर रही हैं। मनुष्य की विशेषता है कि वह अच्छाई की ओर बढ़ता है, बुराई को छोड़ता है। अपनी इस विशेषता को मनुष्य छोड़ दे तो मनुष्य व पशु में अन्तर नहीं रह जाता है। मनुष्य ही है जो जानता है कि मेरे अकेले के ठीक होने से नहीं होगा। सारी दुनिया का हित होगा तभी मैं भी ठीक रह सकूँगा। धर्म ही है जो मनुष्य को जीवन की कला सिखाता है। धर्म से उसे समाधान व शांति मिलती है।

संस्कृति वत्सल सम्मान समारोह
पूजनीय सरसंघचालक डाॅ. मोहनराव भागवत का उद्बोधन

अभी यहां मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चैहान का सम्मान किया गया है। सम्मान का अर्थ होता है जिम्मेदारी बढ़ना। जिस अपेक्षा से सम्मान किया जाता है, उन अपेक्षाओं पर खरा उतरना होता है। सम्मानित व्यक्ति को ध्यान रखना होता है कि वह अपेक्षित स्थान से नीचे न उतरे। 
   हमारी संस्कृति हमारी पहचान है। यह हमारी जगजननी है। उसने हमें विशिष्ट स्वभाव दिया है। जिसके आधार पर हमने विश्व को मार्ग दिखाया। विश्व का हर देश जब भी पतित हो लड़खड़ाया, सत्य की पहचान करने इस धरा के पास आया।

स्वर्ण जयन्ती समारोह उद्घाटन कार्यक्रम
राज्यपाल पंजाब प्रदेश माननीय कप्तानसिंह सोलंकी

जिस साहित्य में राष्ट्रीयता नहीं हो वो साहित्य किस बात का। उन्होंने ने कहा कि साहित्य समाज का दर्पण होता है। अगर आप किसी समाज को देखना और उसके बारे में जानना चाहते हैं तो आप उस समाज के साहित्य को देखें। उन्होंने कहा कि आज का दिन इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि आज ही के दिन स्वातंत्र्य वीर सावरकर का निधन हुआ था और आज ही महर्षि वाल्मीकि की जयन्ती भी है। वीर सावरकर को याद करते हुए श्री सोलंकी ने कहा कि स्वतंत्रता के लिए उन्होंने इतनी बड़ी कुर्बानी दी, वह भी परिवार सहित दी। एक जन्म में दो जन्म के कारावास की सजा मिली। 1966 में जब उनका निधन हुआ उस समय वे देश के हालात से संतुष्ट नहीं थे। इसलिए जब हम उनकी जीवन गाथा को पढ़ेंगे तो हमें यह मालूम होगा कि मृत्यु उनको आई नहीं थी, मृत्यु उन्होंने खुद बुलाई थी। इसका एक कारण यह था कि देश की स्वतंत्रता के 18-19 वर्ष बीत जाने के बाद भी वह नहीं हुआ जो स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद देश चाहता था। जिसके लिए लिए लोगों ने स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ी थी, बलिदान दिया था।

स्वर्ण जयन्ती समापन
राज्यपाल उत्तरप्रदेश माननीय राम नाईक

मैं साहित्य परिषद् के अनेक कार्यक्रमों में अतिथि के रूप में आता रहा हूँ। अपनी सद्य प्रकाशित पुस्तक ‘चरैवेति चरैवेति’ की चर्चा करते हुए कहा कि अब में भी लेखक हो गया हूँ और इस बार एक लेखक के रूप में आपके बीच हूँ।