
























अध्यक्ष सूची

श्री.जैनेन्द्र कुमार

डॉ. गोविन्द शंकर कुरूप

डॉ. फतेहसिंह

पण्डित सोहन लाल द्विवेदी

डॉ. जी. वी. सुब्रमण्यम

डॉ. रमानाथ त्रिपाठी

डॉ. जगदीश गुप्ता

डॉ. विद्यानिवास मिश्र

श्री. भंडारु सदाशिव

डॉ. दयाकृष्ण विजय कार्यकारी अध्यक्ष

डॉ. कन्हैयासिंह कार्यकारी अध्यक्ष

डॉ. यतीन्द्र तिवारी कार्यकारी अध्यक्ष

डॉ. बलवंत जानी

डॉ. त्रिभुवननाथ शुक्ल

डॉ. कसी रेड्डी

डॉ. सुशीलचंद्र त्रिवेदी "मधुपेश" - ( वर्तमान अध्यक्ष)
स्थापना







अखिल भारतीय साहित्य परिषद् की स्थापना अश्विन शुल्क द्वादशी सम्वत २०३३ विक्रमी, तदनुसार २७ अक्तूबर, १९६६ को दिल्ली में हुई और उसी वर्ष इसका राष्ट्रीय अधिवेशन प्रसिद्ध साहित्यकार जैनेन्द्र जी की अध्यक्षता में संपन्न हुआ |
यह संगठन आज देश के जम्मू कश्मीर, हिमाचल, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, आंध्रप्रदेश, उडीसा, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, बिहार, बंगाल, असम और अरुणाचल प्रदेश प्रान्तों ने भारत-भक्ति के भाव जागरण करते हुए आत्मचेतन भारत के निर्माण के द्वारा साहित्य-रचना और आलोचना के क्षेत्र में वैचारीक की स्थापना के अपने संकल्प को आप सब के सक्रिय सहयोग से साकार करने में सफल हुआ |
उद्देश्य
- 1. भारतीय साहित्य और भारतीय भाषाओ की उन्नति |
- 2. भारतीय साहित्य एवं भाषाओं के अनुसंधान कार्य को प्रोत्साहन तथा तत्संबंधी अनुसंधान केंद्र की स्थापना |
- 3. भारतीय भाषाओं में परस्पर आदान -प्रदान और सहयोग को बढ़ावा देना |
- 4. भारतीय जीवन - मूल्यों में आस्था रखने वाले साहित्यकारों को प्रोत्साहित करना तथा ऐसे साहित्य के प्रकाशन और प्रसारण में सहयोग करना |
- 5. जनमानस में भारतीय साहित्य के प्रति आस्था तथा अभिरुचि उत्पन्न करना |
- 6. साहित्य सामाजिक परिवर्तन का वाहक बन कर राष्ट्र की प्रगति में प्रभावी भूमिका निभा सके , इसके लिए प्रयास करना |
- 7. इन उद्देश्यों की पूर्ति हेतु कार्य समिति द्वारा निर्णीत अन्य कार्य |

साहित्यकार सम्मान समारोह





प्रथम साहित्यकार सम्मान समारोह 2007 दिल्ली
संगोष्ठी में उद्बोधन देते हए पूजनीय सुदर्शन जी, नरेन्द्र कोहली और महामंत्री कृष्णचन्द्र गोस्वामी

द्वितीय साहित्यकार सम्मान समारोह 2013 भोपाल
समारोह का उद्घाटन करे हुये पूजनीय सरसंघचालक जी

तृतीय साहित्यकार सम्मान समारोह 2023 भुवनेश्वर
परिषद् के कार्यकर्ता
प्रकाशन




विशेष रुप से प्रदर्शित स्वयंसेवक
"अरे दोस्त ! क्यों रोता है? तेरे भीतर तो सर्वशक्ति मौजूद है। तू तो भग- ज्योति से युक्त है, भग-ज्योति देने वाला तो तेरा अपना स्वरूप है। तू उसी का आव्हान कर।" ये महापुरुष मानव के भीतर ही सम्यक प्रकाशनीय उस भागवती अमर-ज्योति या सर्वशक्ति की ओर संकेत करते हैं जिसके द्वारा वह उस अंधकार को मानव जीवन से निकालकर सत्य को सुलभ बना सकता है। इसी सम्भावना को लक्ष्य करके भारतीय वाङमय में मानव-जीवन की सर्वोत्कृष्ट गरिमा को स्वीकार किया गया है।
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मध्य भारतीय हिंदी साहित्य सभा गैलरी





