अखिल भारतीय साहित्य परिषद्

डॉ. सुशीलचंद्र त्रिवेदी "मधुपेश" - ( वर्तमान अध्यक्ष)

डॉ. सुशील चन्द्र त्रिवेदी "मधुपेश " जी का जन्म 31 जुलाई 1955 ई. में जनपद हरदोई के पाली नामक नगर में हुआ । आपकी प्रारम्भिक शिक्षा हरदोई में हुई और उच्च शिक्षा के लिए आपका काशी जाना हुआ ।डॉ.  त्रिवेदी ने काशी में अपने विद्यार्थी जीवन के दौरान से ही साहित्य सृजन आरंभ कर दिया था। आपको काशी में रहते हुए डॉ. हजारीप्रसाद द्विवेदी ,साहित्य शिरोमणि  बटुकनाथ शास्त्री खिस्ते, पं.द्विजेन्द्रनाथ मिश्र "निर्गुण" जैसे महा मनीषियों, प्रशस्त साहित्यकारों का सानिध्य प्राप्त हुआ। डॉ. हजारी प्रसाद द्विवेदी ने आपको 'मधुपेश' उपनाम दिया । आपने अपना शोध कार्य 'दशरूपक एवं साहित्य दर्पण के नाट्य तत्वों का समीक्षात्मक अनुशीलन' विषय पर पूर्ण किया है । आपने सामाजिक अनुभूति के आधार पर साहित्य सृजन किया।आपके अनुभवों से लाभान्वित होकर युवा रचनाधर्मी स्वयं को धन्य समझता है ।आपकी सरलता और सदाशयता की झलक आपके साहित्य में भी देखने को मिलती है। सामाजिक अनुभूति के आधार पर आपने यह तय किया कि साहित्य सृजन के साथ ही साथ समाज की सेवा करना भी आवश्यक है। आपने आम जनमानस की पीड़ा से द्रवित होकर केवल कविता ही नहीं लिखी ।आपने आम जनमानस को उसकी पीड़ा से मुक्ति कैसे दिलाई जाए इस हेतु भी प्रयास आरंभ कर दिया। साहित्यकार का धर्म है कि वह समाज में व्याप्त बुराइयों को अपनी ज्ञानात्मक संवेदना के आलोक में दूर करने का प्रयास करे। काशी में रहकर साहित्य का अध्ययन करने के दौरान अपने पाया कि शिक्षा ही एक ऐसा माध्यम है जिसके सहारे समाज की मुख्य धारा से कटे लोगों को समाज की मुख्य धारा में लाया जा सकता है। आपने अध्ययन के दौरान अनुभव किया कि स्वयं का भरण पोषण तो कोई भी कर सकता है लेकिन परहित की कामना के साथ जीवनयापन करने में जो सुख मिलता है उसका  कोई दूसरा विकल्प नहीं होता और यही कारण था कि अपने शिक्षक की नौकरी छोड़कर समाज सेवा का व्रत लिया। आपके द्वारा समाज सेवा और शिक्षा क्षेत्र में किए गए कार्य युवा पीढ़ी को एक ऐसी दृष्टि देते हैं जिसके माध्यम से उसे समाज जीवन में कार्य करने में सुविधा होती है। आपकी कविताएं और आलेख अनेक पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहे हैं। आपकी रचनाधर्मिता का सम्मान समाज में सदैव बना रहा क्योंकि आपने अपनी रचना में उसी यथार्थ को स्थान देने का प्रयास किया जिस यथार्थ के साथ आम जनमानस जीवन यापन कर रहा है। आपके द्वारा सृजित साहित्य किसी के विरोध के लिए नहीं है , वह लोगमंगल के लिए है। आपकी साहित्यिक अभिव्यक्ति के रूप में 'धर्म सम्राट' और 'मृत्युंजय सुभाष' जैसी पुस्तक पाठकों में प्रतिष्ठा प्राप्त कर रही है। आपकी काव्य कृति 'अपना राजस्थान' आपकी लोक दृष्टि को अभिव्यक्त देती है। आपकी यह कृति वीरों की धरती को प्रणाम निवेदित करती है। 'कण- कण जहां त्याग का दर्पण, तृण-तृण में बलिदान वीरों का पावन प्रदेश यह, अपना राजस्थान।।'               आप गहरे इतिहास बोध के साथ लिखते हैं। राजस्थान की धरती योद्धाओं के शौर्य का साक्षी रही है । आपकी सधी हुई वाणी प्रकार योद्धाओं का शौर्य जीवंत उठता है। हिंदी भाषा के प्रतिष्ठत साहित्यकार ,समीक्षक प्रो. सूर्य प्रसाद दीक्षित आपकी काव्य कृति 'अपना राजस्थान'के संदर्भ में लिखते हैं  कि" मैं कवि को उसकी प्रौढ़ प्रांजल भाषा तथा राष्ट्रीय संस्कृत से जुड़ी अभिलाषा के लिए साधुवाद देता हूँ और सच्चे मन से इस कृति का स्वागत करता हूं।"         प्रतिष्ठित समीक्षक की टिप्पणी से डॉ.सुशील चंद्र त्रिवेदी के व्यक्तित्व और समाज में उनकी प्रतिष्ठा का आभास होना स्वाभाविक है। आपका लेखन राष्ट्र प्रथम की भावना के साथ है। आपके लिए राष्ट्रीय अस्मिता महत्वपूर्णं है। आपकी रचनात्मकता का साक्षात्कार करते हुए यह अनुभव होना स्वाभाविक है कि आपका हृदय राष्ट्र के लिए धड़कता है। सामाजिक अनुभूति के लिए आप पूरे देश में प्रवास करते रहते हैं। आप प्रवास के दौरान जो कुछ अनुभव करते हैं वह किसी न किसी रूप में आपके साहित्य में उपस्थित होता है। एक साहित्यकार समाज को संस्कारिक भी करता है । डॉ. सुशील चंद्र त्रिवेदी का साहित्य कुटुंब प्रबोधन की दृष्टि से भी महत्वपूर्णं है।           सेवा क्षेत्र में आपके योगदान पर विचार न किया जाए तो आपके व्यक्तित्व की ठीक प्रकार से समीक्षा नहीं हो पाएगी।बाल्यकाल से ही विपन्न ग्राम जीवन में व्याप्त अशिक्षा, भुखमरी, बेरोजगारी, बीमारी एवं कुप्रथाओं से जकड़े हुए  समाज को देखकर  डॉ सुशील चंद्र त्रिवेदी के मन में एक चिंता का भाव सदैव बना रहा और इसी भाव के कारण आपने समाज की सेवा का व्रत लिया। आपने सर्वप्रथम  अपने ही गांव में सार्वजनिक शिक्षोन्नयन  संस्थान नाम से पूर्व माध्यमिक विद्यालय की आधारशिला रखी जो कि आज शिक्षा क्षेत्र का गौरवशाली प्रतिष्ठान है ।        'मधुपेश' उपनाम से सुविख्यात आप भविष्य द्रष्टा हैं। शिक्षा और सेवा के क्षेत्र में स्वयंसेवी संगठनों के माध्यम से कार्य करना कठिन है लेकिन आपने अपने प्रयासों से उस कठिन को सरल बना दिया। आपने स्वयंसेवी संगठनों के साथ ही साथ भारत सरकार और राज्य सरकार दोनों के द्वारा संचालित योजनाओं के माध्यम से भी  ग्रामीण जीवन को उत्कृष्ट बनाने का प्रयास किया। समाज में मदिरा पान के कारण अनेक परिवार टूट जाते हैं जिसे दृष्टिगत रखते हुए आपने ने मध्य निषेध चिकित्सालय के माध्यम से हजारों परिवारों को एक बार फिर से समाज की मुख्य धारा से जोड़ते हुए ,एक स्वस्थ समाज के निर्माण में अपना महत्वपूर्णं योगदान दिया। आपका महत्वपूर्णं एवं सराहनीय कार्य वृद्ध जनों की सेवा है। आपने वृद्ध जनों के कठिन जीवन का अनुभव किया। औद्योगीकरण ने समाज में बहुत कुछ बदला। समाज हम दो हमारे दो के सिद्धांत पर आगे बढ़ता रहा। अपने ही परिवार के वृद्धजन लोगों को बोझ लगने लगे। आपने  ऐसे ही वृद्धजनों की सेवा के लिए स्वयं को आगे किया जिसके परिणाम स्वरूप उत्तर प्रदेश में आपके द्वारा 'सार्वजनिक शिक्षोन्नयन  संस्थान 'के माध्यम से अनेक वृद्धा आश्रम संचालित हो रहे हैं। वृद्धजन एक्ट भारत सरकार 2007/  14 के अंतर्गत उत्तर प्रदेश सरकार के साथ मिलकर प्रदेश के 75 जनपदों में स्वयंसेवी संगठनों के माध्यम से वृद्धा आश्रमों के सफल संचालन का अनुभव आपके पास है।         आपके सेवा भाव को दृष्टिगत रखते हुए, सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय भारत सरकार के द्वारा बुजुर्गों की सेवा हेतु दिए जाने वाले सर्वश्रेष्ठ सम्मान 'वयो श्रेष्ठ सम्मान 2018' से आपको भारत के उपराष्ट्रपति के द्वारा  सम्मानित किया जा चुका है। आपके द्वारा 'कृष्ण कुटीर महिला आश्रय सदन वृंदावन मथुरा का संचालन किया जा रहा है। यह देश की एक मात्र ऐसी संस्था है जो 1000 संवासिनियों /माताओं के लिए रोजगार युक्त भारत सरकार की कल्याणकारी, महत्वाकांक्षी योजना के अंतर्गत संचालित है। उत्तर प्रदेश के पूर्व राज्यपाल राम नाइक जी एवं महामहिम राज्यपाल श्रीमती आनंदीबेन पटेल जी  द्वारा समय-समय पर आपके द्वारा संचालित वृद्धाआश्रमों की सराहना की जाती रही है।         आपकी  संगठनात्मक शक्ति और साहित्यिक अभिरुचि को दृष्टिगत  रखते हुए   2021ई. में हरदोई में संपन्न हुए अखिल भारतीय साहित्य परिषद के राष्ट्रीय अधिवेशन में आपको अखिल भारतीय साहित्य परिषद का राष्ट्रीय अध्यक्ष घोषित किया गया। अखिल भारतीय साहित्य परिषद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का अनुषंगिक संगठन हैं जो भारत की सभी भाषाओं के साहित्यकारों के मध्य कार्य करता है ।संगठन की दृष्टि से देश भर में आपका प्रवास होता रहता है। आपके मार्गदर्शन में देश के लगभग सभी प्रांतों में अखिल भारतीय साहित्य परिषद की इकाई का गठन किया जा चुका है। आपके सरल व्यवहार के कारण साहित्यकारों का आपसे जुड़ना स्वाभाविक है। आपके लिए लेखक के विचार महत्वपूर्णं है। राष्ट्रीय अस्मिता को दृष्टिगत रखते हुए लेखन कार्य करने वाले साहित्यकारों को आपका यथासंभव सहयोग प्राप्त होता रहता है। एक अभिभावक के रूप में साहित्यकारों की आपसे अपेक्षा रहती है और आप उनकी अपेक्षा के अनुरूप उन्हें अवसर देने का प्रयास भी करते हैं। आपका सर्वप्रमुख गुण है किसी की निंदा न सुनना , राष्ट्रप्रथम-भाव से समाज के लिए अपना सर्वतोभावेन समर्पण।

अध्यक्ष सूची

भारत के निम्न साहित्यकार अखिल भारतीय साहित्य परिषद् के राष्ट्रीय अध्यक्ष रह चुके हैं

श्री.जैनेन्द्र कुमार

डॉ. गोविन्द शंकर कुरूप

डॉ. फतेहसिंह

पण्डित सोहन लाल द्विवेदी

डॉ. जी. वी. सुब्रमण्यम

डॉ. रमानाथ त्रिपाठी

डॉ. जगदीश गुप्ता

डॉ. विद्यानिवास मिश्र

श्री. भंडारु सदाशिव

डॉ. दयाकृष्ण विजय कार्यकारी अध्यक्ष​

डॉ. कन्हैयासिंह कार्यकारी अध्यक्ष​

डॉ. यतीन्द्र तिवारी कार्यकारी अध्यक्ष​

डॉ. बलवंत जानी

डॉ. त्रिभुवननाथ शुक्ल

डॉ. कसी रेड्डी

डॉ. सुशीलचंद्र त्रिवेदी "मधुपेश" - ( वर्तमान अध्यक्ष)

स्थापना

अखिल भारतीय साहित्य परिषद द्वारा बहुत तरह का योजना हर जिले में चलाया जा रहा है

अखिल भारतीय साहित्य परिषद् की स्थापना अश्विन शुल्क द्वादशी सम्वत २०३३ विक्रमी, तदनुसार २७ अक्तूबर, १९६६ को दिल्ली में हुई और उसी वर्ष इसका राष्ट्रीय अधिवेशन प्रसिद्ध साहित्यकार जैनेन्द्र जी की अध्यक्षता में संपन्न हुआ |
यह संगठन आज देश के जम्मू कश्मीर, हिमाचल, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, आंध्रप्रदेश, उडीसा, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, बिहार, बंगाल, असम और अरुणाचल प्रदेश प्रान्तों ने भारत-भक्ति के भाव जागरण करते हुए आत्मचेतन भारत के निर्माण के द्वारा साहित्य-रचना और आलोचना के क्षेत्र में वैचारीक की स्थापना के अपने संकल्प को आप सब के सक्रिय सहयोग से साकार करने में सफल हुआ |

उद्देश्य

डॉ. सुशील चन्द्र त्रिवेदी "मधुपेश " जी का जन्म 31 जुलाई 1955 ई. में जनपद हरदोई के पाली नामक नगर में हुआ । आपकी प्रारम्भिक शिक्षा हरदोई में हुई और उच्च शिक्षा के लिए आपका काशी जाना हुआ ।डॉ.  त्रिवेदी ने काशी में अपने विद्यार्थी जीवन के दौरान से ही साहित्य सृजन आरंभ कर दिया था। आपको काशी में रहते हुए डॉ. हजारीप्रसाद द्विवेदी ,साहित्य शिरोमणि  बटुकनाथ शास्त्री खिस्ते, पं.द्विजेन्द्रनाथ मिश्र "निर्गुण" जैसे महा मनीषियों, प्रशस्त साहित्यकारों का सानिध्य प्राप्त हुआ। डॉ. हजारी प्रसाद द्विवेदी ने आपको 'मधुपेश' उपनाम दिया । आपने अपना शोध कार्य 'दशरूपक एवं साहित्य दर्पण के नाट्य तत्वों का समीक्षात्मक अनुशीलन' विषय पर पूर्ण किया है । आपने सामाजिक अनुभूति के आधार पर साहित्य सृजन किया।आपके अनुभवों से लाभान्वित होकर युवा रचनाधर्मी स्वयं को धन्य समझता है ।आपकी सरलता और सदाशयता की झलक आपके साहित्य में भी देखने को मिलती है। सामाजिक अनुभूति के आधार पर आपने यह तय किया कि साहित्य सृजन के साथ ही साथ समाज की सेवा करना भी आवश्यक है। आपने आम जनमानस की पीड़ा से द्रवित होकर केवल कविता ही नहीं लिखी ।आपने आम जनमानस को उसकी पीड़ा से मुक्ति कैसे दिलाई जाए इस हेतु भी प्रयास आरंभ कर दिया। साहित्यकार का धर्म है कि वह समाज में व्याप्त बुराइयों को अपनी ज्ञानात्मक संवेदना के आलोक में दूर करने का प्रयास करे। काशी में रहकर साहित्य का अध्ययन करने के दौरान अपने पाया कि शिक्षा ही एक ऐसा माध्यम है जिसके सहारे समाज की मुख्य धारा से कटे लोगों को समाज की मुख्य धारा में लाया जा सकता है। आपने अध्ययन के दौरान अनुभव किया कि स्वयं का भरण पोषण तो कोई भी कर सकता है लेकिन परहित की कामना के साथ जीवनयापन करने में जो सुख मिलता है उसका  कोई दूसरा विकल्प नहीं होता और यही कारण था कि अपने शिक्षक की नौकरी छोड़कर समाज सेवा का व्रत लिया। आपके द्वारा समाज सेवा और शिक्षा क्षेत्र में किए गए कार्य युवा पीढ़ी को एक ऐसी दृष्टि देते हैं जिसके माध्यम से उसे समाज जीवन में कार्य करने में सुविधा होती है। आपकी कविताएं और आलेख अनेक पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहे हैं। आपकी रचनाधर्मिता का सम्मान समाज में सदैव बना रहा क्योंकि आपने अपनी रचना में उसी यथार्थ को स्थान देने का प्रयास किया जिस यथार्थ के साथ आम जनमानस जीवन यापन कर रहा है। आपके द्वारा सृजित साहित्य किसी के विरोध के लिए नहीं है , वह लोगमंगल के लिए है। आपकी साहित्यिक अभिव्यक्ति के रूप में 'धर्म सम्राट' और 'मृत्युंजय सुभाष' जैसी पुस्तक पाठकों में प्रतिष्ठा प्राप्त कर रही है। आपकी काव्य कृति 'अपना राजस्थान' आपकी लोक दृष्टि को अभिव्यक्त देती है। आपकी यह कृति वीरों की धरती को प्रणाम निवेदित करती है। 'कण- कण जहां त्याग का दर्पण, तृण-तृण में बलिदान वीरों का पावन प्रदेश यह, अपना राजस्थान।।'               आप गहरे इतिहास बोध के साथ लिखते हैं। राजस्थान की धरती योद्धाओं के शौर्य का साक्षी रही है । आपकी सधी हुई वाणी प्रकार योद्धाओं का शौर्य जीवंत उठता है। हिंदी भाषा के प्रतिष्ठत साहित्यकार ,समीक्षक प्रो. सूर्य प्रसाद दीक्षित आपकी काव्य कृति 'अपना राजस्थान'के संदर्भ में लिखते हैं  कि" मैं कवि को उसकी प्रौढ़ प्रांजल भाषा तथा राष्ट्रीय संस्कृत से जुड़ी अभिलाषा के लिए साधुवाद देता हूँ और सच्चे मन से इस कृति का स्वागत करता हूं।"         प्रतिष्ठित समीक्षक की टिप्पणी से डॉ.सुशील चंद्र त्रिवेदी के व्यक्तित्व और समाज में उनकी प्रतिष्ठा का आभास होना स्वाभाविक है। आपका लेखन राष्ट्र प्रथम की भावना के साथ है। आपके लिए राष्ट्रीय अस्मिता महत्वपूर्णं है। आपकी रचनात्मकता का साक्षात्कार करते हुए यह अनुभव होना स्वाभाविक है कि आपका हृदय राष्ट्र के लिए धड़कता है। सामाजिक अनुभूति के लिए आप पूरे देश में प्रवास करते रहते हैं। आप प्रवास के दौरान जो कुछ अनुभव करते हैं वह किसी न किसी रूप में आपके साहित्य में उपस्थित होता है। एक साहित्यकार समाज को संस्कारिक भी करता है । डॉ. सुशील चंद्र त्रिवेदी का साहित्य कुटुंब प्रबोधन की दृष्टि से भी महत्वपूर्णं है।           सेवा क्षेत्र में आपके योगदान पर विचार न किया जाए तो आपके व्यक्तित्व की ठीक प्रकार से समीक्षा नहीं हो पाएगी।बाल्यकाल से ही विपन्न ग्राम जीवन में व्याप्त अशिक्षा, भुखमरी, बेरोजगारी, बीमारी एवं कुप्रथाओं से जकड़े हुए  समाज को देखकर  डॉ सुशील चंद्र त्रिवेदी के मन में एक चिंता का भाव सदैव बना रहा और इसी भाव के कारण आपने समाज की सेवा का व्रत लिया। आपने सर्वप्रथम  अपने ही गांव में सार्वजनिक शिक्षोन्नयन  संस्थान नाम से पूर्व माध्यमिक विद्यालय की आधारशिला रखी जो कि आज शिक्षा क्षेत्र का गौरवशाली प्रतिष्ठान है ।        'मधुपेश' उपनाम से सुविख्यात आप भविष्य द्रष्टा हैं। शिक्षा और सेवा के क्षेत्र में स्वयंसेवी संगठनों के माध्यम से कार्य करना कठिन है लेकिन आपने अपने प्रयासों से उस कठिन को सरल बना दिया। आपने स्वयंसेवी संगठनों के साथ ही साथ भारत सरकार और राज्य सरकार दोनों के द्वारा संचालित योजनाओं के माध्यम से भी  ग्रामीण जीवन को उत्कृष्ट बनाने का प्रयास किया। समाज में मदिरा पान के कारण अनेक परिवार टूट जाते हैं जिसे दृष्टिगत रखते हुए आपने ने मध्य निषेध चिकित्सालय के माध्यम से हजारों परिवारों को एक बार फिर से समाज की मुख्य धारा से जोड़ते हुए ,एक स्वस्थ समाज के निर्माण में अपना महत्वपूर्णं योगदान दिया। आपका महत्वपूर्णं एवं सराहनीय कार्य वृद्ध जनों की सेवा है। आपने वृद्ध जनों के कठिन जीवन का अनुभव किया। औद्योगीकरण ने समाज में बहुत कुछ बदला। समाज हम दो हमारे दो के सिद्धांत पर आगे बढ़ता रहा। अपने ही परिवार के वृद्धजन लोगों को बोझ लगने लगे। आपने  ऐसे ही वृद्धजनों की सेवा के लिए स्वयं को आगे किया जिसके परिणाम स्वरूप उत्तर प्रदेश में आपके द्वारा 'सार्वजनिक शिक्षोन्नयन  संस्थान 'के माध्यम से अनेक वृद्धा आश्रम संचालित हो रहे हैं। वृद्धजन एक्ट भारत सरकार 2007/  14 के अंतर्गत उत्तर प्रदेश सरकार के साथ मिलकर प्रदेश के 75 जनपदों में स्वयंसेवी संगठनों के माध्यम से वृद्धा आश्रमों के सफल संचालन का अनुभव आपके पास है।         आपके सेवा भाव को दृष्टिगत रखते हुए, सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय भारत सरकार के द्वारा बुजुर्गों की सेवा हेतु दिए जाने वाले सर्वश्रेष्ठ सम्मान 'वयो श्रेष्ठ सम्मान 2018' से आपको भारत के उपराष्ट्रपति के द्वारा  सम्मानित किया जा चुका है। आपके द्वारा 'कृष्ण कुटीर महिला आश्रय सदन वृंदावन मथुरा का संचालन किया जा रहा है। यह देश की एक मात्र ऐसी संस्था है जो 1000 संवासिनियों /माताओं के लिए रोजगार युक्त भारत सरकार की कल्याणकारी, महत्वाकांक्षी योजना के अंतर्गत संचालित है। उत्तर प्रदेश के पूर्व राज्यपाल राम नाइक जी एवं महामहिम राज्यपाल श्रीमती आनंदीबेन पटेल जी  द्वारा समय-समय पर आपके द्वारा संचालित वृद्धाआश्रमों की सराहना की जाती रही है।         आपकी  संगठनात्मक शक्ति और साहित्यिक अभिरुचि को दृष्टिगत  रखते हुए   2021ई. में हरदोई में संपन्न हुए अखिल भारतीय साहित्य परिषद के राष्ट्रीय अधिवेशन में आपको अखिल भारतीय साहित्य परिषद का राष्ट्रीय अध्यक्ष घोषित किया गया। अखिल भारतीय साहित्य परिषद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का अनुषंगिक संगठन हैं जो भारत की सभी भाषाओं के साहित्यकारों के मध्य कार्य करता है ।संगठन की दृष्टि से देश भर में आपका प्रवास होता रहता है। आपके मार्गदर्शन में देश के लगभग सभी प्रांतों में अखिल भारतीय साहित्य परिषद की इकाई का गठन किया जा चुका है। आपके सरल व्यवहार के कारण साहित्यकारों का आपसे जुड़ना स्वाभाविक है। आपके लिए लेखक के विचार महत्वपूर्णं है। राष्ट्रीय अस्मिता को दृष्टिगत रखते हुए लेखन कार्य करने वाले साहित्यकारों को आपका यथासंभव सहयोग प्राप्त होता रहता है। एक अभिभावक के रूप में साहित्यकारों की आपसे अपेक्षा रहती है और आप उनकी अपेक्षा के अनुरूप उन्हें अवसर देने का प्रयास भी करते हैं। आपका सर्वप्रमुख गुण है किसी की निंदा न सुनना , राष्ट्रप्रथम-भाव से समाज के लिए अपना सर्वतोभावेन समर्पण।

डॉ. सुशीलचंद्र त्रिवेदी "मधुपेश" - ( वर्तमान अध्यक्ष)

साहित्यकार सम्मान समारोह

प्रथम साहित्यकार सम्मान समारोह 2007 दिल्ली

संगोष्ठी में उद्बोधन देते हए पूजनीय सुदर्शन जी, नरेन्द्र कोहली और महामंत्री कृष्णचन्द्र गोस्वामी

द्वितीय साहित्यकार सम्मान समारोह 2013 भोपाल

समारोह का उद्घाटन करे हुये पूजनीय सरसंघचालक जी

तृतीय साहित्यकार सम्मान समारोह 2023 भुवनेश्वर

परिषद् के कार्यकर्ता

प्रकाशन

भारतीय साहित्य का राष्ट्रीय स्वर
भारतीय नाट्य रंग
राष्ट्रीय अस्मिता और साहित्य
भारतीय साहित्य और कुटुम्ब

विशेष रुप से प्रदर्शित स्वयंसेवक

अखिल भारतीय साहित्य परिषद् द्वारा बहुत तरह का योजना हर जिले में चलाया जा रहा है
कृपया नीचे दिया गया फॉर्म भरें और हम अगले 1 घंटे में आपसे संपर्क करेंगे!

मध्य भारतीय हिंदी साहित्य सभा गैलरी

अखिल भारतीय साहित्य परिषद द्वारा बहुत तरह का योजना हर जिले में चलाया जा रहा है

अखिल भारतीय साहित्य परिषद केन्द्रीय कार्यकारिणी बैठक 15-16 अप्रैल 2023 वैशाख कृष्ण दशमी-एकादशी विक्रम संवत २०८० स्थान - माण्डव

अखिल भारतीय साहित्य परिषद द्वारा बहुत तरह का योजना हर जिले में चलाया जा रहा है

स्व.डॉ कमल किशोर गोयनका जी की श्रद्धांजलि सभा

अखिल भारतीय साहित्य परिषद के पूर्व राष्ट्रीय उपाध्यक्ष एवं प्रख्यात प्रेमचंद साहित्य मूर्धन्यसाहित्यकार डॉ कमल किशोर गोयनका के श्रद्धांजलि सभा में पधारे विश्व विख्यात साहित्यकार अखिल भारतीय साहित्य परिषद एवं केंद्रीय हिंदी संस्थान के संयुक्त तत्वाधान में देश-विदेश से प्रमुख साहित्यकार एकत्र हुए और अपनी विनम्र श्रद्धांजलि प्रकट की। प्रमुख साहित्यकारों में पूर्व केंद्रीय मंत्री निशंक जी भारतीय भाषा परिषद के अध्यक्ष चम्मू कृष्ण शास्त्री जी शिक्षा संस्कृति न्यास के संगठक श्री अतुल कोठारी जी विद्या भारती के वरिष्ठ पूर्णकालिक श्री लक्ष्मी नारायण भालाजी दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष डॉ राम शरण गौड़ जी साहित्य अकादमी हरियाणा के पूर्व निदेशक डॉ पूरनमल गौड़ जी प्रवासी भारत के संपादक श्री राकेश पांडे जी कमल संदेश के संपादक श्री शिव शक्ति जी अखिल भारतीय साहित्य परिषद राष्ट्रीय मंत्री प्रवीण आर्य ने अखिल भारतीय साहित्य परिषद के संगठन मंत्री आदरणीय श्रीधर पराड़कर जी, सह संगठन मंत्री मनोज कुमार जी पवन पुत्र बादल जी और ऋषि जी की ओर से श्रद्धांजलि अर्पित की एवं प्रोफेसर नीलम राठी एवं प्रसिद्ध विचारक विद्वान दिल्ली प्रदेश के अध्यक्ष डॉ अवनिजेश अवस्थी सहित 137 साहित्यकार उपस्थित रहकर के अपने विनम्र श्रद्धांजलि प्रकट की। केंद्रीय हिंदी संस्थान के उपाध्यक्ष डॉ सुरेंद्र दुबे एवं डॉ सुनील बाबूराव कुलकर्णी ने सभी का आभार प्रकट किया। उल्लेखनीय रहा कि डॉक्टर गोयनका जी के परिवार के सभी सदस्य श्रद्धांजलि सभा में उपस्थित रहे और अखिल भारतीय साहित्य परिषद और केंद्रीय हिंदी संस्थान के प्रति आभार व्यक्त किया।